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पुरानी टिहरी का जन्मदिन, जानिए कैसे बनी थी राजधानी

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नरेश तोमर, आज पुरानी टिहरी का जन्मदिन है, 1815 में आज के ही दिन टिहरी राजधानी बनी थी। टिहरी त्रिहरी का अपभ्रंश है, पुरानी टिहरी भिलंगना और भागीरथी के संगम पर बसी थी, जिसे गणेश प्रयाग के नाम से जाना जाता था। टिहरी शहर और उसकी किवदंतियां बहुत प्रचारित थी, कहा जाता था कि टिहरी आन्छरियों का शहर है, आन्छरिया जो प्रतापनगर के डांडे में रहती और सुबह नहाने के लिए गणेश प्रयाग आती थी और बलिष्ठ, सुंदर युवाओं को हर ले जाती थीं। एक दिन एक सरकारी फरमान निकला और उसने टिहरी ही हर ली और उसे एक भयानक बाँध में डूबा दिया, एक सभ्यता, एक संस्कृति विकास के नाम पर दफन कर दी गई।

टिहरी रियासत के काल में ही उत्तराखण्ड का पहला जन आंदोलन हुआ 1930 में, जब आजाद पंचायत के आह्वान पर सैकड़ों लोग तिलाड़ी के मैदान में सत्ता के विरोध में आ खड़े हुये और गोलियों से भून दिये गए। इसी टिहरी ने हमें श्रीदेव सुमन दिये, जिन्होंने अत्याचारों से लड़ने की ताकत को लोगों को समझाया, जो आज भी हमारे प्रेरणास्रोत हैं, राजा के कारिंदों के उनकी हत्या कर शव को भिलंगना में बहा दिया था, आज इस बांध के नीचे कहीं श्रीदेव सुमन जैसे हमारे पुरखे की आत्मा है। जब देश आजाद हुआ तो राजा ने विलय से मना कर दिया, विद्रोह हुआ, मोलू भरदारी और नागेंद्र सकलानी जी को भी गोली मार दी गई। लोग अपने शहीदों की अर्थी को कंधे पर लेकर पूरी रियासत में घूमे, इन शहीदों के ऊपर कोई कफ़न नहीं था, बस उनकी कमीजें खोल दी गई थी, ताकि लोग गोलियों के घाव देखकर राजा की क्रूरता को देख सके। तीन दिन बाद जब यह शवयात्रा टिहरी पहुंची तो राजा की सेना ने इसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया। यह भी अपने आप में एक अनोखी घटना है कि एक शवयात्रा के आगे एक रियासत ने घुटने टेके।

आज टिहरी नहीं है, डूब चुकी विकास के नाम पर,लेकिन टिहरी आज भी संघर्ष की प्रेरणा देती है, जनांदोलनों की याद दिलाती है, श्रीदेव सुमन के जज्बे को, देशभक्ति को संभाले रखती है।

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