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असम मेघालय का मेरा ताजा सर्वेक्षण- कौस्तुभ नारायण मिश्र

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05 से 13 दिसम्बर 2019 सदैव याद रहेगा। इसमें भी 10-12 दिसम्बर को तो कभी भुलाया नहीं जा सकता। इन सबमें उत्तर असम के प्रान्त प्रचारक श्री नृपेन वर्मन जी और इन्हीं के कारण वरिष्ठ कार्यकर्ता एवं भाजपा के प्रदेश महामन्त्री नवदीप कलिता जी तथा दीपक शर्मा जी, रूबल दास जी, बिनोय दास जी, दीपांकर शर्मा जी एवं इनके लोगों के अविस्मरणीय सहयोग की जितनी भी प्रसंशा किया जाय, कम है। जब तक कामाख्या रेलवे स्टेसन सकुशल पहुँचा नहीं दिया, हम सभी 31 छात्राएँ, 21 छात्र, दो शिक्षक, एक कर्मचारी; सभी 55 लोगों की तब तक भरपूर चिन्ता और देखभाल इन लोगों के द्वारा किया गया।

चिन्ता का दौर विकट था जब भोजन, चाय और जलपान की इतने लोगों की व्यवस्था की संभावना नहीं थी; तब दीपक जी और रूबल जी ने कामाख्या मन्दिर परिसर क्षेत्र में दीपांकर शर्मा जी के अतिथि भवन के 17 कमरों में ठहरने की व्यवस्था इस उद्देश्य से करवाया कि, हम सभी सुरक्षित भी रहेंगे और मन्दिर की दिन में 12 से 03 बजे तक मिलने वाली खिचड़ी खीर छोला और पापड़ की परसादी के सहारे हम लोग कुशल भी रहेंगे। दूसरा विकट अवसर शिलांग से गुवाहाटी लौटने के समय का था, लगभग 130 किमी की दूरी न केवल 11 घण्टे में अराजक तत्वों के ट्रैफिक रोकने के कारण पूरी हुई; बल्कि दहशत में खड़ी हजारों गाड़ियाँ और उनके लोगों की दशा देखने लायक थी, जब कोई पेट्रोल पम्प या अन्य खाली स्थान पर भय के कारण गाड़ी तक नहीं खड़ी करने दे रहे थे।

चिन्ता और तनाव का दौर तो लगभग 87 घण्टे में बहुत देखा; लेकिन सबसे बड़ा संकट था कि, यदि ट्रेन कैन्सिल हो गयी तो 55 लोगों को कब कहाँ कैसे ले जायेंगे? जब कि सभी ट्रेनें कैन्सिल हो रहीं थीं। लेकिन माता कामाख्या की कृपा से यह बड़ा संकट भी दूर हो गया; जब अविस्मणीय सहयोग मिला वरिष्ठ आई आर एस अधिकारी और पूर्वोत्तर रेल के चीफ सेफ्टी ऑफीसर एम के अग्रवाल जी का और इसमें हमारा मनोबल बढ़ाने का कार्य किया अवकाश प्राप्त आई आर एस देवेश मिश्र जी और लखनऊ में कार्यरत आई आर एस आशुतोष दीक्षित जी ने। अन्ततः यहाँ से एकलौती ट्रेन प्रस्थान कर पायी; जिसे शाम 06.30 पर राइट टाइम चलना था, लेकिन 06.34 तक किस प्लेटफॉर्म से जायेगी, इसकी भी घोषणा रेल प्रशासन नहीं कर पाया था; लेकिन अन्ततः ट्रेन शाम 07.30 बजे प्रस्थान कर गयी।

एक बार संकट फिर बढ़ा, जब कोकराझार, न्यू बोंगाईगांव और अलीपुरदौर में ट्रेन पर रात में पत्थरबाजी शुरू हुई! लेकिन उच्च सुरक्षा में चल रही ट्रेन को अराजक तत्वों से नियन्त्रित करके आगे बढ़ाने में सुरक्षाकर्मी, 4 घण्टे विलम्ब भले हुआ, लेकिन चलाने में सफल रहे। अतिशय आभारी हैं अपने आदरणीय अग्रजवत आचार्य मनोज दीक्षित जी का, जिन्होंने पल पल स्वयं हमसे सम्पर्क बनाये रख तन्त्र विकसित करने हेतु मार्गदर्शन देते रहे। इन सभी वरिष्ठ और आदरणीय जनों ने स्वयं से संज्ञान लेकर अनवरत सम्पर्क में रहकर जो किया है, उसका हृदयनवत आभार प्रकट करना मेरा नैतिक कर्तव्य है। इसमें मैं आभार मानता हूँ मेरे सहयोगी असिस्टेन्ट प्रोफेसर दुर्गेश मणि त्रिपाठी और कर्मचारी बृज किशोर दुबे का भी, जो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप साथ बने रहे। मुझे सबसे अच्छा लगा, जब बृज किशोर दुबे (जिनको प्रेम से हम लोग बड़कू कहते हैं) ने कहा- साहब! आप अगर रूबल दास जी से कहि देंती, ते हम उनके साथ स्टेसन जाके एक सब देखि अइतीं, का हालत बा? हमने हाँ कहा, लेकिन दुर्गेश जी ने रिस्क लेने से मना किया, फिर भी मैंने भेजा और देखकर जो लौटे तो सच में मन पर बोझ और अधिक हो गया, लेकिन रूबल जी के साथ होने से बड़कू पूरी तरह सुरक्षित थे।

लेकिन स्थानीय होने के कारण, भीड़ से रूबल जी की बात और परिस्थिति से उन्हें अवगत कराने पर पैदल जाने देने को तैयार होने के कारण लगभग चार किलोमीटर सफलता पूर्वक पैदल चलकर हम सभी स्टेशन पहुँच गये। बच्चों को सभी विकट परिस्थियों का एहसास भी न हो और वे दहशतजदा न हों, यह भी बड़ी चिन्ता थी; इसमें और सभी परिस्थियों से निपटने में आत्मबल, धैर्य, साहस और कर्तव्यपथ के अनुगमन तथा सामाजिक सांगठनिक एवं सार्वजनिक सरोकारों ने भी बड़ा सहयोग किया; इनके प्रति आखिर स्वहेतुक आभार क्या ज्ञापन करना! लेकिन मनोबल बढ़ाने और अनवरत हमसे, दुर्गेश जी या बृज किशोर जी से समाचार लेते रहने के लिये प्राचार्य डॉ अमृतांशु शुक्ल जी, महाविद्यालय के डॉ राघवेन्द्र प्रताप मिश्र जी, डॉ राजेश कुमार सिंह जी, डॉ ब्रजेश कुमार सिंह जी, डॉ रेखा तिवारी जी, डॉ रीना मालवीय जी, डॉ त्रिभुवन नाथ तिवारी जी, आनन्द प्रकाश उपाध्याय जी, राणा प्रताप सिंह जी, प्रफुल्लचन्द्र जी, नेबुलाल जी, कमलेश जी आदि सभी एवं अन्य की भी मैं प्रसंशा करता हूँ , जिनका हम सभी 55 लोगों के प्रति प्रत्यक्ष या परोक्ष सद्भावना रही है।

हम सभी अपने परिवारी जनों और सम्बन्धियों के प्रति क्या कहें? भोग हम लोग रहे थे और झेल वे लोग रहे थे। मेरी पत्नी ने आज सुबह 9 बजे फ़ोन पर कहा- तीन दिन से नींद नहीं आयी, अब सोने जा रही हूँ। पिता जी ने कहा- तुम्हारा बैग हमेशा उठा ही रहता है, अब मेरे रहते कहीं नहीं जाना है। मेरे पुत्रों ने क्या कहा? क्या कहें!? लेकिन अन्ततः सब कुछ हम लोगों हेतु अतिशय सुखद है, यशस्वी है, मंगलमय है; इसमें मेरा तो कुछ नहीं, जगतजननी माता कामाख्या की कृपा है। इन सारी परिस्थितियों में मैं नरेन्द्र भाई मोदी जी, अमित भाई शाह जी तथा सी ए बी एवं एन आर सी की अपने को और अपने लोगों को लाख पीड़ा के बावजूद मुक्त कण्ठ से प्रसंशा करता हूँ। कृपया सीएबी एवं एनआरसी पर मेरा अगला लेख पढ़ने का कष्ट करें।

प्रस्तुति: कौस्तुभ नारायण मिश्र

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