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अयोध्मा विवाद का ऐसा रहा सफरनामा

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नरेश तोमर, 1958 अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया जिसमें हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। मस्जिद बनाने का आरोप बाबर पर लगा कहां जाता है कि बाबर के शह पर ही उनके सेनापति मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई। 1853 : मुगलों और नवाबों के शासन के चलते 1528 से 1853 तक इस मामले में हिंदू बहुत मुखर नहीं हो पाये पर मुगलों और नवाबों का शासन कमजोर पड़ने पर अंग्रेजी हकूमत का प्रभाव आने के साथ ही हिंदू ने यह मामला उठाया और कहा कि भगवान राम के जन्म स्थान मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई है इसको लेकर हिंदुओं और मुसलमानों में झगड़ा हो गया 1859 : अंग्रेजों हुकूमत ने तारो की एक बाड़ खड़ी कर कर विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर मुस्लिम और हिन्दुओ को अलग अलग पूजा और नमाज की इज़ाजत दे दी। इसके बाद 19 जनवरी 1885 में यह मामला न्यायालय में पहुंचा ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरा पर बने अस्थाई मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने के लिए निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवर दास ने 1985 में पहली बार सब जज फैजाबाद के न्यायालय में अंग्रेज सरकार के खिलाफ स्वामित्व को लेकर दीवानगी मुकदमा किया। सब जज निर्णय दिया कि वहां हिंदुओं को पूजा-अर्चना का अधिकार है। पर वे जिलाधिकारी के फैसले खिलाफ मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की अनुमति नहीं दे सकते। 22 दिसंबर 1949 : ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ उस समय प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू और उस समय के वर्तमान मुख्यमंत्री थे गोविन्द बल्लभ पंत और जिलाअधिकारी थे के के नैय्यर 29 दिसंबर 1949 विवाद के चलते तात्कालिक सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचे के भीतर परिसर को कुर्क कर लिया और नगरपालिका के तत्कालीन अध्यक्ष बाबू प्रिय दत्त राम को यहां का रिसीवर नियुक्त किया इनकी देखरेख में पुजारी सुबह-शाम बगल के गेट से जाकर रामलला की पूजा करता सकता था। 16 जनवरी 1950 : गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद के सिविल जज की अदालत में मुकदमा दायर कर ढांचे के मुख्य गुंबद के नीचे भगवान राम लला की प्रतिमा की अर्चना पूजा करने की मांग की जो कि सभी हिंदू अपने आराध्य की पूजा कर सकें। 17 दिसंबर 1959 : रामानंद संप्रदाय की तरफ से निर्मोही अखाड़े के छह व्यक्तियों ने मुकदमा दायर कर इस स्थान पर अपना दावा ठोका | साथी मांग की कि रिसीवर पीड़ित राम को हटाकर उन्हें पूजा अर्चना की अनुमति दी जाए यह उनका अधिकार है. ऐसी ही एक याचिका 5 दिसंबर 1950 : महंत रामदास परम हंस की तरफ से दायर मुकदमा में भी दिया गया |
1 फरवरी 1986 : फैजाबाद के जिला न्यायाधीश एके पांडे ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश पांडे की अर्जी पर इस स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया | इसके खिलाफ मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया | इस फैसले के खिलाफ एक मुस्लिम ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में अपील दाखारिज हुई | 16 दिसंबर 1987: यूपी सरकार ने उच्च न्यायालय से प्रार्थना की कि इस मुद्दे पर अलग-अलग न्यायालयों में चल रहे मुकदमे पर वह सुनवाई कर ले सारे मामले एक साथ करके पूरा मामला सुन ले | 1 जुलाई 1989 इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवकीनंदन अग्रवाल जो अब स्वर्गवासी हो चुके हैं इस मुकदमे का निर्णय करने के लिए राम लला की तरफ से फैजाबाद की अदालत में मुकदमा का निर्णय करने के लिए रामलला की तरफ से फैजाबाद की अदालत में मुकदमा दायर किया | 10 जुलाई 1989 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के 16 दिसंबर 1987 के पत्र के आधार पर मामला लखनऊ खंडपीठ में स्थांतरण कर दिया | तीन न्यायाधिशों की पूर्ण पीठ बनी | जिसमे दो हिन्दू और एक मस्लिम न्यायधीश रखा गया | इस न्याय पीठ ने लगतार 21 सालो तक सुनवाई की |

जनवरी 9 नवंबर 1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के अवसर पर मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन करने का फैसला हुआ साथी 9 नवंबर 1989 को श्री राम जन्म भूमि स्थल पर मंदिर के संन्यास की घोषणा की गई | काफी विवादों और खींचा तान के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की इजाजत दी बिहार निवासी अनुसूचित जाति के कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराया गया
24 मई 1980 : हरिद्धार में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ संतों ने एकादशी के दिन मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा की घोषणा की | 1 सितंबर 1990 : अयोध्या के निमंत्रण कार्यक्रम हुआ उसमें अग्नि प्रजवलित की गई विश्व हिंदू परिषद ने इसे राम ज्योति नाम दिया | इस ज्योति को गांव-गांव पहुंचाने के अभियान के सहारे विश्व हिंदू परिषद ने लोगों को कार सेवा के लिए तैयार किया | तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कार सेवा पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा | और कहा कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा
25 मई 1990 : भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने कार सेवा में ही तारीख की घोषणा की साथ ही गुजरात सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा शुरू कि और बिहार के समस्तीपुर में वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया और कारसेवकों ने उसी समय वहां पर गिरफ्तारी दी और भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र में वी पी सिंह की सरकार से तत्काल समर्थन वापस लिया
30 अक्टूबर 1990 : अयोध्या में कारसेवा जन्मस्थली की ओर बढ़े सुरक्षाबलों से कारसेवक की भिड़ंत | अशोक सिंघल सहित कई कारसेवक गंभीर रूप से घायल इस भिड़ंत में कुछ कारसेवकों ने गुंबद पर पहुंचकर भगवा झंडा लगा दिया | 2 नवंबर 1990 कारसेवकों की जन्म भूमि मंदिर कूच की घोषणा हुई | पुलिस ने गोली चलाई कोठारी बंधु सहित कई कारसेवकों की मौत हो गयी इसके विरोध में देश भर में जेल भरो आंदोलन हुआ | 4 अप्रैल 1991 : दिल्ली में मंदिर निर्माण को लेकर विराट हिंदू रैली हुई और उसी दिन मुलायम सिंह यादव सरकार ने इस्तीफा दिया | इसके बाद उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए और भाजपा की सरकार बनी |
30 अक्तूबर 1992 : दिल्ली में धर्मसंसद की बैठक हुई | उसमे निर्णय हुआ की दुबारा कारसेवक शरू करने का निर्णय लिया | 6 दिसंबर 1992 अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवकों ने ढांचा गिरा दिया इसकी जगह इसी दिन शाम को अस्थाई मंदिर बना कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी | केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने कल्याण सिंह सहित अन्य राज्यों की भाजपा सरकार को भी बर्खास्त कर दिया | अयोध्या और प्रदेश सहित देश में कई जगह सांप्रदायिक हिंसा हुई जिसमें कई लोगों की मौत हो गई |
6 दिसंबर 1992 अयोध्या राम जन्मभूमि थाने में हजारों लोगों पर मुकदमा जिसमे स्व ;अशोक सिंघल,लालकृष्ण अडवाणी, उमाभारती ,और अन्य बहुत सारे कारसेवको पर मकदमा हुआ |
8 दिसंबर 1992 : अयोध्या में कर्फ्यू लगा था वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में गुहार की कि भगवान भूखे हैं राम भोग की अनुमति दी जाए | 16 दिसंबर 1992 : बाबरी मस्जिद ढांचे को ढहाने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान के लिए लिब्रम आयोग गठित किया | इसे 16 मार्च 1993 को रिपोर्ट सौंपनी थी |
राम मंदिर पर इसके बाद वह मोड़ आए जो राममंदिर निर्माण में और मिल का पत्थर साबित होने थे | 1 जनवरी 1993 में न्यायाधीश हरीनाथ तिलहरी दर्शन पूजन की अनुमति दी| 7 जनवरी 1993 : केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा दी गई भूमि सहित यहां पर कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया | 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विवाद सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में अयोध्या विभाग बनाया | जनवरी-फरवरी 2002 शिलादान और श्रीराम महायज्ञ घोषणा फरवरी में श्रीराम महायज्ञ | .27 फरवरी 2002 :
साबरमती ट्रेन से अयोध्या से गुजरात लॉटरी राम सेवकों को गोधरा बोगी में जलाकर मौत के घाट उतार दिया .5 मार्च 2003 में भारतीय पुरातत्व को संबोधित स्थल पर खुदाई के निर्देश दिए 22 अगस्त 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायाधीश की रिपोर्ट सौंपी 5 जुलाई 2005 में अयोध्या के विवादित स्थल पर छह आत्मघाती दस्तों ने हमला किया इनमें सभी आतंकवादी मारे गए और तीन आम नागरिको की भी मौत हुई |
3 सितंबर 2010 इस स्थल को तीन पक्षों श्री राम लला विराजमान निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया | न्यायाधीश ने बीच वाले गुंबद के नीचे जहां मूर्ति थी उसे रामलाल का जन्म स्थान माना |
21 मार्च 2017 : सर्वोच्य न्यायालीय ने मध्यस्ता से मामला सुलझाने की पेशकश की | यह भी कहा कि दोनों पक्ष राजी हो तो वह इसके लिए तैयार है |
8 मार्च 2019 : सर्वोच्च न्यायालय ने सुलह समझौते से इस मामले का हल निकालने के लिए सेवानिवृत न्ययाधीश फ़क़ीर मोहम्मद इब्राहिम की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पैनल गठित किया | इसमें आध्यत्म गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्री राम पांच सदस्य बनाए गए | यह कोई समधान नहीं निकल सका |
6 अगस्त 1919 को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू गई | 16 अक्टूबर 2019 : सुनवाई पूरी फैसला सुरक्षित | 40 दिन चली सुनवाई |
9 नवम्बर दिन शनिवार 2019 को आखिर वह फैसला आ ही गया जिसको आने में 134 साल लग गए | पहला मामला वर्ष 1885 में महंत रघबर दास ने दायर किया था | फैसला रामलला के पक्ष में आया | लगा पूरा हिन्दू समाज की जीत हुई | कितने सालो से हिन्दू न गुलामी सही हे ७०० सालो की गुलामी के बाद पहली बार हिन्दू और देश के हिन्दू मुस्लिम सतभावना की जीत हुई हे।

With thanks & Regards,
NARESH TOMAR,

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