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डिसेबिलिटी पेंशन मामले में हाईकोर्ट ने बीएसएफ जवान को दी राहत

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हाईकोर्ट ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान मानवीर सिंह को राहत दी है। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को उनके डिसेबिलिटी पेंशन के भुगतान का आदेश दिया है। अदालत ने अपने फैसले में मानवीर सिंह को 65 फीसदी डिसेबिलिटी के आधार पर, जिसे 75 फीसदी तक राउंड ऑफ किया गया, पेंशन देने का आदेश दिया।

मानवीर सिंह ने 1990 में बीएसएफ में कांस्टेबल (जनरल ड्यूटी) के रूप में भर्ती होने के बाद मणिपुर और गुजरात में सेवाएं दी। भुज, गुजरात में ड्यूटी के दौरान तनाव के कारण उन्हें डिप्रेशन हुआ। उनका इलाज भुज और अहमदाबाद के अस्पतालों में हुआ। बाद में दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज में भी उनका इलाज चला। उनकी मेडिकल श्रेणी को 2000 में घटा दिया गया। 2004 में उन्हें बाइपोलर अफेक्टिव डिसऑर्डर पाया गया जिसके बाद 2011 में मेडिकल बोर्ड ने उन्हें बीएसएफ में सेवा के लिए अनफिट घोषित कर दिया।

मानवीर सिंह ने इसके खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि उनकी बीमारी सेवा के दौरान उत्पन्न तनाव के कारण हुई। उन्हें डिसेबिलिटी पेंशन का हकदार होना चाहिए। उनके वकील ने तर्क दिया कि चूंकि भर्ती के समय वे पूरी तरह स्वस्थ थे, इसलिए उनकी बीमारी को सेवा से संबंधित माना जाना चाहिए।

कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि मेडिकल बोर्ड ने उनकी बीमारी के सेवा से संबंधित होने या न होने के बारे में कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया। कोर्ट ने केंद्रीय सिविल सेवा (असाधारण पेंशन) नियम, 1939 का हवाला देते हुए कहा कि बाइपोलर अफेक्टिव डिसऑर्डर को साइकोसिस के तहत शामिल किया जाता है, जो सेवा के दौरान उत्पन्न हो सकता है। कोर्ट ने माना कि मानवीर सिंह को क्षेत्रीय सेवा के दौरान उदारता के साथ लाभ दिया जाना चाहिए।

अधिकारी की पत्नी पर थप्पड़ मारने का आरोप
2003 में जब मानवीर सिंह 42वीं बटालियन, अबोहर, पंजाब में तैनात थे। उस दौरान एक वरिष्ठ अधिकारी के बेटे को स्कूल बस से पांच मिनट देरी से उनके घर छोड़ा। उसके बाद, उक्त अधिकारी की पत्नी ने कथित तौर पर मानवीर को थप्पड़ मारा और अपमानित किया। उन्होंने इसकी शिकायत एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी से की तो उन्हें धमकी दी गई। बाद में, जब वह मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश हुए, जिसमें उक्त वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे, उनकी मेडिकल श्रेणी को कथित तौर पर दुर्भावनापूर्ण तरीके से और कम कर दिया गया। इसके अलावा, 27 दिसंबर 2003 को बीएसएफ ने उनके खिलाफ बिजली मीटर में छेड़छाड़ के आरोप में विभागीय कार्रवाई शुरू की थी। हालांकि, 6 फरवरी 2004 को यह आरोप वापस ले लिया गया और संबंधित पत्र रद्द कर दिया गया।

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