
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पारिवारिक पेंशन के लिए बेटियों के बीच भेदभाव करना असांविधानिक करार दिया है। अदालत ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 समानता के सिद्धांत का उल्लंघन बताया है। कोर्ट ने अविवाहित बेटियों के लिए पारिवारिक पेंशन के अधिकार को सुनिश्चित किया है। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता 19 अक्तूबर 2014 से बकाया पेंशन की हकदार होंगी। अदालत ने प्रतिवादियों को 31 जुलाई तक सभी औपचारिकताएं पूरी कर अगस्त से याचिकाकर्ता को नियमित पारिवारिक पेंशन का भुगतान सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।
अदालत ने कहा कि अगर बकाया राशि का भुगतान 31 अक्तूबर तक नहीं किया गया तो याचिकाकर्ता 6 फीसदी प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्याज की भी हकदार होंगी, जो देय होने की तारीख से अंतिम भुगतान तक लागू होगा। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखते हुए पेंशन की बकाया की अवधि में आवश्यक संशोधन किए हैं। विधानसभा सचिवालय की ओर से एकल जज के फैसले को डबल बेंच में चुनौती दी गई थी। खंडपीठ ने टिप्पणी की कि ऐसी कोई तर्कसंगत भिन्नता या मानदंड नहीं है, जिसके आधार पर 1 जनवरी 2006 से पहले या बाद में सेवानिवृत्त या मृतक सरकारी कर्मचारियों की अविवाहित बेटियों के बीच भेदभाव किया जा सके। अदालत ने सभी अविवाहित बेटियां को जो निर्धारित मानदंड पूरा करती हैं, उन्हें एक समान वर्ग का हिस्सा माना है।
यह है मामला
याचिकाकर्ता के पिता हिमाचल प्रदेश विधानसभा से 1980 में सेवानिवृत्त हुए थे। याचिकाकर्ता ने पिता और माता के निधन के बाद पारिवारिक पेंशन का दावा किया था। पिता के निधन के बाद याची की मां को 2001 तक पारिवारिक पेंशन मिलती रही। वर्ष 2001 में मां की मृत्यु हो गई। याचिकाकर्ता ने 14 अक्तूबर 2009 के कार्यालय ज्ञापन के आधार पर पारिवारिक पेंशन की मांग की। इसमें अविवाहित बेटियों को भी शामिल किया गया था। वहीं हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया था कि कर्मचारी से संबंधित रिकॉर्ड नष्ट हो गया है। तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2017 में याचिका दायर की। याची की ओर से दावा प्रस्तुत करने में अत्यधिक देरी की गई थी। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया।