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प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सख्त: कंपनियों को खुद जुटाने होंगे कुरकुरे-चिप्स के पैकेट, नया नियम लागू

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हिमाचल प्रदेश में कंपनियां प्लास्टिक में डालकर जितना टन उत्पाद भेजेंगी, उतना टन प्लास्टिक उनको वापस भी खरीदना होगा। बेचने के बाद यह कंपनी की जिम्मेदारी होगी कि वह इस प्लास्टिक वेस्ट को एकत्र करे और इसे वैज्ञानिक तरीके से डेस्ट्रॉय भी करे। यह प्लास्टिक सीमेंट कंपनियों के पास खत्म किया जाता है, जिनसे उत्पादक कंपनियों को ईपीआर यानि एक्सटेंडेड प्रोडयूसर रिस्पांसिबिलिटी क्रेडिट हासिल होगा। राज्य में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इन उत्पादक कंपनियों ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। सूत्रों के अनुसार इन कंपनियों के प्रतिनिधियों को शिमला बुलाया गया था, जहां पर प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों ने उनके साथ एक बैठक की और इस बैठक में महत्त्वपूर्ण निर्देश उन्हें दिए गए हैं।

इसमें कुरकुरे, चिप्स, टॉफी, चॉकलेट आदि प्लास्टिक वेस्ट में ही आते हैं और इनको बंद नहीं किया जा सकता है, लिहाजा अब यह निर्णय लिया गया है कि जो कंपनी जितना उत्पाद करेगी उतना ही प्लास्टिक वेस्ट उसे वैज्ञानिक तरीके से नष्ट करना होगा जिसके लिए उसे विशेष क्रेडिट दिया जाएगा। हिमाचल प्रदेश में भी इसे लागू किया जा रहा है और अब कंपनियों को इसपर निर्देश जारी कर दिए गए हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव अनिल जोशी ने इस महत्त्वपूर्ण बैठक की अध्यक्षता की और उन्होंने कंपनियों के प्रतिनिधियों से इस पर विस्तार से बात की। उन्होंने अलग-अलग निर्माता कंपनियों के प्रतिनिधियों से यह जाना कि वे हिमाचल प्रदेश में कितना व्यापार कर रहे हैं। साथ ही यहां पर किस कंपनी का कितना उत्पाद बेचा जाता है और अब तक बेचे गए उत्पाद के प्लास्टिक वेस्ट का वे क्या करते हैं।

प्रदेश में अभी तक शहरी निकाय या पंचायत जो कूड़ा एकत्र कर रही हैं, उनको उसकी एवज में विशेष रूप से कोई पैसा नहीं मिलता, मगर भविष्य में अब इन संस्थानों को इस तरह का प्लास्टिक वेस्ट जुटाने पर कंपनियों से ही पैसा मिलना शुरू हो जाएगा। इससे उनको प्रोत्साहन मिलेगा और वो बखूबी इस काम को अंजाम देंगे। क्योंकि इस तरह के प्लास्टिक वेस्ट को जुटाने के लिए अभी केवल पंचायतें या नगर निकायों की एजेंसियां ही कारगर हैं जिसके अलावा कोई तीसरी एजेंसी नहीं है।

आने वाले समय में जो भी शहरी निकाय या पंचायतें प्लास्टिक वेस्ट को इक_ा करेंगी, उनके साथ कंपनियां समझौता करेंगी और उनको इस वेस्ट को एकत्र करने की एवज में वे पैसा देंगी। इस प्लास्टिक वेस्ट को सीमेंट कंपनियों को वैज्ञानिक तरीके से नष्ट करने के लिए दिया जाएगा और इसकी एवज में कंपनियों को क्रेडिट मिलेगा। यह के्रडिट एक तरह से कार्बन क्रेडिट के रूप में मिलेगा। भविष्य में इन्हीं कंपनियों की जिम्मेदारी होगी कि वे बेचे गए उत्पाद के जितना प्लास्टिक वेस्ट एकत्र करके नष्ट करेंगे। ऐसा न होने पर इन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।

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