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प्रदेश में जाट महासभा का इतिहास, पदाधिकारी क्यों नहीं देते जवाब

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जाट महासभा का इतिहास

जाट महासभा की स्थापना 1970 के आसपास हुई थी, आर्मी के एक कर्नल साहब द्वारा बनाई गई थी। इसमें अध्यक्ष भी कर्नल साहब ही थे, उसके बाद सुखबीर सिंह वर्मा जो सुभाष नगर में अभी भी जीवित है, बीच में या सुखबीर सिंह वर्मा से पहले भी कोई कुछ कम समय के लिए अन्य अध्यक्ष रहा। इसके बाद अवधेश चौधरी जाट महासभा के अध्यक्ष रहे, कहा यह जाता है अवधेश चौधरी जिस समय अध्यक्ष थे। उस समय जाट महासभा में ज्यादा कार्य नहीं हुआ।

जाट समाज के लोगों ने अवधेश चौधरी से लड़ झगड़ कर अध्यक्ष पद वापिस लिया। उसके पीछे कारण यह बताया जाता है कि अवधेश चौधरी जाट महासभा संस्था को ट्रस्ट बनाने का सपना देख रहे थे। उन्होंने जाट समाज के लोगों से कहा कि आप एक तरफ रहिए, हम ट्रस्ट के द्वारा एक जाट भवन का निर्माण करेंगे। जिसकी देखरेख ट्रस्ट के लोग ही करेंगे।

समाज के लोग उस समय बहुत गुस्से में आए और उनसे अध्यक्ष पद जबरदस्ती ले लिया।उस समय जाट समाज के के फंड में ₹2 लाख की एफडी थी।

जाट महासभा में वर्तमान पदाधिकारी

₹2 लाख की एफडी कैसे बनी इसके पीछे भी एक बड़ी रोचक कहानी है

1970 वर्ष से पहले एक मेरठ के तहसीलदार साहब हुआ करते थे। उनके 8 लड़के है जिनमें सबसे बड़ा लड़का सुरेंद्र सिंह थे।जिनकी अब मृत्यु हो चुकी है, अगर आप जाट महासभा के अध्यक्ष ओमपाल राठी जी के साथ में एक व्यक्ति योगेंद्र सिंह को देखते होंगे वह उनके बड़े भाई है, कहा जाता है कि सुरेंद्र सिंह 1 तारीख से लेकर 10 तारीख तक पूरे देहरादून में पैदल घूम कर जाट समाज के हर घर से 100 रुपए जाट समाज के नाम से चंदा मांगते थे। यह सिलसिला 1 या 2 वर्ष नहीं लगभग 20 वर्ष तक जारी रहा। ऐसी महान विभूति जिसने हमारे जाट समाज के लिए पैदल घूम कर कार्य किया हो। उसको भी आज याद करने का समय है। जोली ग्रांट के एमडी बबली चौधरी के परिवार से ही यह परिवार आता है ऐसी जानकारी है।

उत्तराखंड जाट महासभा चुनाव का दौर

अवधेश चौधरी के बाद जाट महासभा के अगले अध्यक्ष ओमपाल राठी को क्यों बनाया गया


Wकी जाट समाज द्वारा देहरादून में एक भवन निर्माण किया जाए। ताकि मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, बिजनौर, मेरठ, बागपत, और अन्य्य स्थानों सेआने वाले लोगों को रहने और खाने की सुविधा मिल सके, युवाओं के लिए भी सब सुविधा उपलब्ध हो क्योंकि इस समय उत्तराखंड उत्तर प्रदेश में ही शामिल था, ज्यादातर भर्ती उत्तराखंड देहरादून में भी होती थी इसलिए जाट भवन का निर्माण करना सबसे ज्याद जरूरी था।

जाट महासभा के अध्यक्ष ओमपाल राठी व अन्य पदाधिकारी

जाट महासभा में लगभग 2006 से अब तक कितनी बार हुए चुनाव

वर्तमान जाट महासभा में कितने सदस्य हैं और कौन-कौन लोग हैं। इसकी जानकारी कोई भी नहीं दे रहा है,ऐसी ही स्थिति पूर्व अध्यक्ष अवधेश चौधरी के कार्यकाल में भी बनी हुई थी। अगर कोई संस्था है तो नियम यह कहते हैं कि उसमें हर हर 3 साल बाद चुनाव होने चाहिए, अगर किसी सदस्य का देहांत हो चुका है तो उसको हटाकर दूसरे सदस्य को चुना जाना चाहिए लेकिन अब तक किस वर्ष चुनाव हुए क्या जो सदस्य अब नहीं है उनकी स्थान पर दूसरे सदस्य द्वारा इसकी जानकारी कोई भी देने को तैयार नहीं है।

लेकिन सूत्रों के हवाले से यह जरूर बताया जा रहा है कि 2006 में चुनाव हुए, फिर 2009 में चुनाव हुए वह रुड़की में हुए,2012 में भी हरिद्वार में चुनाव हुए, कुछ चुनाव अध्यक्ष जी की बैठक में भी चुनाव हुए। यह सभी चुनाव मैं पहले बने सदस्यों द्वारा ही शामिल किया गया। कुछ अन्य सदस्य इसमें शामिल नहीं हुए उसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि उनको इसकी जानकारी ही नहीं दी गई।

जाट महासभा में तीज महोत्सव के दौरान

जाट महासभा के पास कितना पैसा है प्राथमिक जानकारी

2009 में जाट महासभा द्वारा कारगी चौक के पास एक जमीन ली गई,जिसमें लगभग देहरादून के 400 परिवारों ने चंदा दिया जो परिवार मेरठ, मुजफ्फरनगर, हरिद्वार,शामली, देहरादून और बागपत के रहने वाले थे और अन्य जगह के लोग देहरादून में रहते हैं। इनके द्वारा 18 लाख रुपए दिए गए, देहरादून के 18 लाख से जाट भवन के निर्माण के लिए पैसे इकट्ठे किए गए, हरिद्वार से ₹8 लाख प्राप्त हुए, ₹2 लाख एफडी जाट समाज के लोगों ने इकट्ठी की हुई थी, जिसमें से ₹7,50 लाख एमडीडीए में नक्शा पास कराने के लिए गए।

जाट समाज का एक अकाउंट भी बताया जाता है, लेकिन क्या यह पैसे इस अकाउंट में थे या किसी पर्सनल खाते में रखे गए थे, इसकी सही जानकारी नहीं मिल पा रहे हैं, 25 लाख रुपए समाज कल्याण विभाग द्वारा आवंटित किए गए थे। समाज कल्याण विभाग के साथ धरमपुर विधानसभा के विधायक विनोद चमोली द्वारा पहले ₹10 लाख देने की बात कही गई। यह भी कहा गया कि अगले 10 साल तक मैं अपनी निधि से हर साल 10 लाख रुपए जाट महासभा को दूंगा। देहरादून में जाट समाज द्वारा चंदे से जो पैसे इकट्ठे हुए उनमें से एक बड़ा नाम और सामने है जिसको बताना जरूरी है, यह है ओएनजीसी के डायरेक्टर रहे बालियान जी उनके द्वारा ₹2 लाख 50 हजार रूपए जाट भवन निर्माण के लिए दिए गए थे।

शिलान्यास के साथ फोटो खींचा ते जाट महासभा के पदाधिकारी

समाज कल्याण विभाग द्वारा कब मिलेंगे पैसे

जाट महासभा अगर पूरे समाज का नेतृत्व करती है और उसमें समय-समय पर चुनाव हुआ है। उसके द्वारा किए जा रहे भवन निर्माण को 2500000 रुपए दिए जाएंगे।अगर यह कुछ व्यक्तियों की ट्रस्ट या एक परिवार की ही संस्था मानी गई तो यह सभी पैसे खत्म माने जाएंगे। ऐसे में आप समाज कल्याण विभाग से पैसे लेने के हकदार नहीं रहोगे।अगर यह जमीन रजिस्टर के यहां जाट महासभा के नाम रजिस्टर हुई तो संस्था को पैसे मिल सकते हैं अन्यथा नहीं मिलेंगे। अगर संस्था में जरा सी भी गड़बड़ी मिली तो संस्था के पदाधिकारी बदले जाएंगे इसमें जिलाधिकारी द्वारा संविधानिक पदाधिकारी बैठा कर चुनाव कराए जाएंगे।

कहां कहां जाट महासभा संस्था मैं आया भटकाव

जाट महासभा द्वारा रजिस्ट्री को लेकर समाज के लोगों के अंदर मतभेद बना हुआ है। साथ ही भवन निर्माण चंदे को लेकर लेकर भी आसामंजस्य की स्थिति है। जाट समाज द्वारा जाट समाज का किस बैंक मैं अकाउंट है, और उसमें कितने पैसे जमा है। यदि अन्य किसी व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत खाते में भी जाट समाज के चंदे के पैसे जमा है तो कितना पैसा जमा है।अब तक जाट महासभा के कब कब चुनाव हुए और उसमें कौन-कौन पदाधिकारी चुने गए। 2009 के बाद नए अध्यक्ष द्वारा कितनी बार चुनाव कराए गए। क्या हर 3 साल में चुनाव कराए गए अभी हाल ही में कितने लोग जाट महासभा के पदाधिकारी हैं,कितने लोग सदस्य हैं।जाट महासभा द्वारा प्रेस वार्ता कर कहा यह कहा यह गया कि नवरात्रों में जाट भवन का निर्माण होगा। इसमें कोई संशय तो नहीं है इसको लेकर भी जाट समाज के लोगों के अंदर रोष दिखाई पड़ रहा है।

स्वर्गीय रणबीर के पिता सुरेंद्र पाल में जाट कॉम के सदस्य

उत्तराखंड के देहरादून में सन 2009 रणबीर एनकाउंटर मैं दिखाई दी जाट एकता की मिसाल,

उत्तराखंड के देहरादून में सन 2009 में रणबीर एनकाउंटर किया गया था। इस दौरान पुलिस द्वारा एक जाट लड़के रणबीर का पुलिस द्वारा एनकाउंटर किया गया था। इस दौरान जाट समाज ने अपनी एकता दिखाते हुए उस समय के केंद्र में मंत्री रहे राजनाथ सिंह को देहरादून आने के लिए विवश कर दिया था। इतना ही नहीं उस समय रमेश निशांक पोखरियाल मुख्यमंत्री थे उनको खुद बैकफुट पर आना पड़ा था। अपनी ही पुलिस के खिलाफ सीबीआई जांच की स्तुति केंद्र सरकार को देनी पड़ी थी। आज भी रणवीर एनकाउंटर को जब भी उत्तराखंड के लोग याद करते हैं कहते हैं जाट समाज के सामने केंद्र और प्रदेश की सरकार भी नहीं टिकती।उस समय जाट समाज के लोगों ने लाठी भी खाई लेकिन रणबीर को न्याय दिला कर ही रहे। जाट समाज से जुड़े लोगों को याद होगा कि नगर निगम में जब बाबा टिकैत आए तो प्रदेश का पूरा पुलिस प्रशासन हिल गया था। अच्छे-अच्छे मंत्री और संत्री बाबा टिकैत के सामने बोल नहीं पाए थे, और उन्होंने दो ही बात खत्म कर दी थी, या तो रणबीर के आरोपियों को सजा दो नहीं तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो।

उसके बाद ही प्रदेश के बीजेपी मुख्यमंत्री रमेश निशंक पोखरियाल द्वारा सीबीआई जांच की स्तुति केंद्र को भेजी गई थी। आज भी उसकी मौत के आरोपी जेल में सजा काट रहे हैं।हम जैसे पत्रकारों से भी उस समय सीबीआई द्वारा पूछताछ की गई। शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता उस समय प्रदेश पुलिस द्वारा हम जैसों को कैसे प्रताड़ित किया गया।अगर आज भी जाट समाज एकजुट हो जाए तो उससे बड़ी ताकत पर देश भर में कोई भी नहीं है।क्योंकि वह आर्थिक और राजनीतिक रूप से सक्षम है। 2009 के बाद जाट समाज की ताकत थी आज तक पुलिस कोई भी उत्तराखंड में एनकाउंटर करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। ऐसे में आज का दिन स्वर्गीय रणवीर के पिता सुरेंद्र पाल को भी याद करने का दिन है क्योंकि अगर सुरेंद्र पाल जैसा जज्बा जाट समाज के अंदर है तो उसको कोई भी ताकत नहीं हरा सकती।

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